Wednesday 19 August 2015

mere sath aksar ..... aksar aisa ho jata hai


मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है
कागज़ों से दोस्ती टूट जाती है।
कलम मुँह फुला कर मेज़ के उस तीसरे दराज़ में छुप जाती है
झुका सा बंद पड़ा वो स्टडी लैंप मुझ पर चीखता चिल्लाता है
मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है
मेज़ के नीचे पड़ा वो स्टील का महंगा कूड़ेदान , कुछ खाली खाली सा है
उँगलियाँ बस एक दूसरे को ज़रा ज़रा सा छू कर ही खुश हैं
मैं चुप चाप बालकनी में बैठे उन गाड़ियों को आते जाते देखता हूँ
उन फड़फड़ाते पन्नों का फहुसफुसाना,हॉर्न के शोरों में दब सा जाता है
मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है
मैं जिसे रोज़ ज़रा ज़रा सा दिल से निकाल कर कागज़ों में भरता हूँ
वो यादें जो कागज़ों के साथ मिल कर मुझ पर हँसती हैं
मैं उन कागज़ों को ज़हन में ही चुप चाप जला देता हूँ
मेरे साथ अक्सर..... अक्सर ऐसा हो जाता है
जब भी सोचता हूँ मैं अक्सर उसके बारे में , उसकी याद मुझसे कोसों दूर चली जाती है
कोसिस करता हू की देख लूं उसे एक बार बंद फोटो के लिफ़ाफ़े में तो मेरी आंखे बुझने सी लगती है
मेरे साथ अक्सर ........अक्सर ऐसा हो जाता है |


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